
Pracharika Sujata Pranami
youtube.com प्रचारिका सुजाता प्रणामी जी श्री निजानंद सम्प्रदाय - श्री कृष्ण प्रणामी धर्म की अनुयायी है। वे श्री निजानंद सम्प.....

मैं कौन हूँ ? Main Kon Hu ? | प्रचारिका सुजाता प्रणामी | Pracharika Sujata Pranami
यह हमारा पहला विडियो है। आशा करते है आपको हमारा यह वीडियो पसंद आएगा। हम आपके लिए ऐसे ही ज्ञान वर्धक वीडियो लाते रहे ...

मैं कौन हूं ? भाग - 2 | प्रवक्ता - प्रचारिका सुजाता प्रणामी | Who am I ? | Main Kaun Hu |
मैं कौन हूं ? भाग - 2 की इस वीडियो में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। यह वीडियो भक्ति के विषय में बनाई गई है। हमें बेहद उम.....

मैं कौन हूँ ? भाग - 3 | Main Kaun Hu ? Part - 3 | Who am I ?
यह हमारा पहला विडियो है। आशा करते है आपको हमारा यह वीडियो पसंद आएगा। हम आपके लिए ऐसे ही ज्ञान वर्धक वीडियो लाते रहे ...

मैं कौन हूँ ? भाग - 4 | Main Kaun Hu ? | Pracharika Sujata Pranami
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Nijanand- Shri Krishna Pranami Charcha

Nijanand- Shri Krishna Pranami Charcha
यहाँ संसार में कुछ लोग स्वयं को ब्रह्मधाम की ब्रह्मात्मा हूँ कहते हैं. क्या कुल्जम स्वरुप तारतम वाणी में पहले स्वयं को पहचानने को कहा है या स्वयं को ब्रह्मात्मा हूँ मान लेने को कहा है ?
स्वयं को पहचाने बिना पूर्ण ब्रह्म परमात्मा को जाना नहीं जा सकता है और स्वयं को ब्रह्मात्मा हूँ यों ही मान लेने से परमधाम नहीं परन्तु दोज़ख की आग में जलना पड़ेगा ऐसा मार्फ़तसागर ग्रन्थ में महामति प्राणनाथ जी कहते हैं।

मैं कौन हूँ ?
प्यारे सुन्दरसाथजी, "मैं कौन हूँ ?" यह बोहोत ही महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। जो कि इस संसार के सभी लोगों के मन में यह प्रश्न उतपन्न नहीं होता। शायद ही कोई ऐसा बिरला होता है जिन्हें ऐसा प्रश्न उत्पन्न होता है। आज से 450 साल पहले एक बालक का जन्म होता है। 10 साल की उम्र में उनके मन में ऐसे प्रश्न होने लगे कि - "मैं कौन हूँ ? मैं कहाँ से आया हूँ ? और मेरी आत्मा का भरतार (स्वामी) कौन है ? इन्हीं प्रश्नों की खोज में वे छोटी सी उम्र में अपना घर, माता पिता को छोड़कर अकेले निकल पड़े परमात्मा की खोज में। कई प्रकार साधु संत, तिथंकर, ऋषिमुनि, ज्ञानीजन, पंडित से मिले, परमात्मा के विषय में प्रश्न किए परंतु आत्म संतुष्टि न होने के कारण खोज जारी रखते हुए वे नवानगर जामनगर पोहोंचे। वहां एक संत की भक्ति से प्रभावित होकर उनकी शरण मे रहने लगे। और उनकी तरह बाल मुकुंद की भक्ति करने लगे। तत्पश्चात वे 14 साल तक निरंतर श्री मद भागवत कथा श्रवण करने लगे। तभी एक दिन शाक्षात पूर्णब्रह्म परमात्मा ने उन्हें दर्शन दिए। और उन्हें उनकी और अपनी पहचान करवाई। तकरीबन 40 साल खोज करने पर, तपस्या करने पर, दर दर भटक ने पर उन्हें परमात्मा की प्राप्ति हुई।
प्यारे सुन्दरसाथजी, इनका नाम है सद्गुरु धनी श्री देवचन्द्र जी। क्या हमने इतनी तपस्या की ? क्या हमें इतनी खोज करनी पड़ी ? नहीं........क्यों ??? क्योंकि हमें पका पकाया खाना जो मिल गया है। लेकिन फिर भी हमे उस खाने की कोई कीमत नहीं। क्यों ? क्योंकि हमसे यह माया छोड़ी नहीं जाती। वो कहते हैं ना कि बिना मेहनत के पैसे कभी हजम नही होते वैसे ही बिना मेहनत के निजानंद का ज्ञान भी हजम नही होता। हम अपने आपको प्रणामी कहते है। त्योहारों पे खूब नाचते है, बोहोत भक्ति दिखाते है पर असल में हम प्रणामी है ? जरा अपने आपसे पूछ के देखिए। हमे अपने खुद की पहचान नही है इसलिए तो जहां से अपना काम बने उस चौखट पे सर को झुका दिया। जिस दिन अपने आपको पहचान जाओगे उस दिन से मुंह से श्री राज श्यामाजी के सिवा और कोई नाम नहीं निकलेगा।
आज की ये पोस्ट अपनी खुद की पहचान करो इसलिए है।
प्रणाम
बंटी कृष्ण प्रणामी
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