अंतर्राष्ट्रीय शरद पूर्णिमा महोत्सव का मुख्य समारोह गुरुवार पूर्णिमा की रात्रि में पन्ना में होगा। रातभर महारास का उल्लास चलेगा

अंतर्राष्ट्रीय शरद पूर्णिमा महोत्सव का मुख्य समारोह गुरुवार पूर्णिमा की रात्रि में पन्ना में होगा। रातभर महारास का उल्लास चलेगा
Padmavatipuri Dham Panna MP History of Prannath and Shard Purnima
पन्ना. अंतर्राष्ट्रीय शरद पूर्णिमा महोत्सव का मुख्य समारोह गुरुवार पूर्णिमा की रात्रि में होगा। रात करीब एक बजे बंगलाजी से श्रीजी की सवारी ब्रह्म चबूतरे में लाई जाएगी। रातभर महारास का उल्लास चलेगा, ब्रह्म चबूतरे में पांच दिनों तक रुकेकी सवारी। इस दौरान पांच दिन तक होंगे गरबा सहित विविध धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम शरद पूनम की चांदनी रात में प्राणनाथ का सौंदर्य देखते ही बनता है। जब चांद पूरा खिला होगा होगा तभी ब्रह्म चबूतरे पर बने बंगलाजी मंदिर से श्रीजी की सवारी को हजारों सुन्दरसाथ नाचते-गाते, गरबा खेलते हुए रासमंडल मेंं पधराएंगे। इस अवसर पर प्रणामी धर्मावलंबी रास उत्सव का आनंद लेते हुए भक्ति रस के अमृत का पान करेंगे। समारोह में वर्ष में एक बार ही बंगलाजी मंदिर से अखंड रास के रचइया की सवारी धूमधाम से रास मंडल में पधराई जाती है । जहां पांच दिनों तक श्रीजी का वास रहता है।






पन्ना जिले में अंतर्राष्ट्रीय शरद पूर्णिमा महोत्सव धूमधाम के साथ मनाया जाता है। महोत्सव में देश-विदेश से हजारों सुंदरसाथ आते हैं। ज्ञात हो कि महामति प्राणनाथ ने संवत् 1740 में खेजड़ा मंदिर परिसर में बुंदेलखंड की रक्षा के लिए महाराजा छत्रसाल को विजयादशमी के दिन वरदानी तलवार सौंपी थी और वीरा उठाकर संकल्प कराया था कि जब तक जीतकर नहीं आओगे तब तक मैं यहीं ठहरुंगा। परिणाम यह रहा कि महाराजा छत्रसाल ने पूरे बुन्देलखंड पर विजय प्राप्त कर ली और अपना साम्राज्य स्थापित कर पन्ना को राजधानी बनाया था।
औरंगजेब के सरदारों को चटाई थी धूल
तेरस की सवारी का आयोजन पहली बार बुंदेलखंड केसरी महाराजा छत्रसाल ने किया था। सद्गुरु के सम्मान का प्रतीक इस सवारी को लेकर मान्यता है कि जब बुंदेलखंड को चारों तरफ से औरंगजेब के सरदारों ने घेर लिया था तब महामति प्राणनाथ ने महाराजा छत्रसाल को अपनी चमत्कारी दिव्य तलवार देकर विजयश्री का आशीर्वाद देकर कहा था कि हे राजन जब तक तुम अपने दुश्मनों को धूल चटाकर नहीं आ जाते तब तक मैं इसी खेजड़ा मंदिर में ही रुकूंगा। तेरस को जब महाराजा छत्रसाल अपने दुश्मनों पर विजयश्री पाकर कर लौटे तो सद्गुरुमहामति प्राणनाथ को पालकी में बिठाकर अपने कंघों का सहारा देकर प्राणनाथ मंदिर स्थित गुम्मट बंगला (जिसे ब्रह्म चबूतरा भी कहते हैं) लाए थे। इसके प्रतीक स्वरूप तभी से यह आयोजन हर वर्ष किया जाता है।

पांच दिन चला था अखंड रास
बताया जाता है कि प्राणनाथ गुंबट बंगला में अपने ५ हजार सुंदरसाथ के साथ ठहरे थे। पूर्णिमा की चांदनी रात में वे सुंदरसाथ के साथ श्रीकृष्ण द्वारा ग्वाल-ग्वालियों के साथ खेले जाने वाले महारास की चर्चा कर रहे थे। इसी दौरान उनके साथ आए सुंदरसाथ ने महामति प्राणनाथ से अखंड महारास का अनुभव कराने का निवेदन किया। तब पूनम की आधी रात शुरू होने वाली थी। इस पर महामति प्राणनाथ ने पांच हजार सुंदरसाथ के साथ महारास खेलना शुरू किया। यह महारास पांच दिन तक बिना रुके, बिना थके चलता रहा। तभी से यह हर साल मनाया जा जाता है।

चार सौ साल पुरानी परंपरा
पवित्र नगरी पन्ना में अंतर्राष्ट्रीय शरद पूर्णिमा महोत्सव के आयोजन को 400 साल पूरे हो चुके हैं। बताया जाता है कि शरद पूर्णिमा महोत्सव का पहला कार्यक्रम संवत् 1740 में हुआ था। तब महामति प्राणनाथ ने 5 हजार सुंदरसाथ के साथ पूनम की चांदनी रात में अखंड रास के दर्शन कराए थे। चार सौ साल के लंबे सफर में यह महोत्सव नित नई उंचाइयों को छूता जा रहा है। अब भारत के अलावा, ब्रिटेन, कनाड़ा और अमेरिका सहित विश्व के कई देशों से सुंदरसाथ पहुंच रहे हैं। हर साल सुंदरसाथ के स्वागत के लिए पवित्र नगरी पलक पांवड़े बिछाए रहती है।
स्वर्ण कलशारोहण में पहुंचे थे सबसे अधिक श्रद्धालु
प्रणामी समाज के मनीष शर्मा ने बताया कि वर्ष 1971 में मंदिर में ढाई क्विंटल सोने का कलश चढ़ाया गया था। इस साल सबसे अधिक श्रद्धालु मुक्तिधाम में पहुंचे थे। उन्होंने बताया, तब पूरे शहर में श्रद्धालु ही श्रद्धालु दिख रहे थे। स्कूलों, कॉलेजों और सरकारी कार्यालयों आदि की छुट्टी कर दी गई थी और सभी जगह श्रद्धालुओं को रुकवाया गया था। तब कोई भी सरकारी भवन ऐसा नहीं बचा था जहां श्रद्धालुओं को नहीं रुकवाया गया हो।
1961 में ट्रस्ट ने सम्हाला कामकाज
प्राणनाथ मंदिर ट्रस्ट की स्थापना वर्ष 1961 में लाली शर्मा के प्रयासों से हुई थी। तब वे ट्रस्ट के वाइस चेयरमैन बने थे। इसके बाद प्राणनाथ ट्रस्ट ही गुंबटजी, बंगलाजी, गुरु मंदिर, बाईजू राज मंदिर, खेजड़ा मंदिर और चौपड़ा मंदिर आदि का रख-रखाव कर रहा है। जब ट्रस्ट नहीं था तब यहां आयोजन में आने वाले लोगों के लिए हर प्रकार की व्यवस्था करने में काफी परेशानी होती थी। ट्रस्ट बनने के बाद व्यवस्थाओं में सुधार हुआ है। श्रद्धालुओं के लिए ट्रस्ट की ओर से आवास व्यवस्था का विस्तार किया गया है। आज यहां आने वाले ज्यादातार श्रद्धालुओं को ट्रस्ट अपने धर्मशालाओं, आवास गृहों आदि में ठहराता है। यहां चलने वाले लंगर में हर दिन हजारों लोग प्रसाद ग्रहरण कर रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक हर साल शरद पूर्णिमा के आयोजन में ट्रस्ट करीब 50 लाख रुपए खर्च करता 

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